क्या हम कभी यह स्वीकार कर पायेंगे कि इस्लामिक और यूरोपीय आक्रांताओं के द्वारा ही हमारी संस्कृति, धर्म और अर्थव्यवस्था का विनाश किया गया था, किया जा रहा है और आगे भी इसके प्रयास उनके द्वारा किए जाते रहेंगे ।
हमें उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है, उनसे अभिभूत होने और उन पर श्रद्धालु होने से हमारी हानि होने की संभावना ज्यादा है ।